महिला दिवस पर देश के पश्चिमी हिस्से से रिपोर्ट / दो बहनों ने एवरेस्ट समेत दुनिया की 5 चोटियां फतह कीं; चढ़ाई में शवों पर से गुजरीं, लेकिन हौसला नहीं हारीं

हीरानगरी सूरत की पर्वतारोही बहनें अनुजा वैद्य (21) और अदिति वैद्य (25) को पहाड़ों से मुकाबला करने की हिम्मत विरासत में मिली है। दोनों के माता-पिता भी पर्वतारोही रहे हैं। बेटियों को माता-पिता ने इस तरह प्रोत्साहित किया कि दोनों एवरेस्ट ही नहीं, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और यूरोप की 5 चोटियां फतह कर चुकी हैं। अब उनका अगला मुकाम उत्तर अमेरिका महाद्वीप के माउंट देनाली को फतह करना है। इसके लिए दोनों बहनें जल्द ही रवाना होने वाली हैं। पढ़ें, उनकी सफलता की कहानी, उन्हीं की जुबानी...



दोनों बहनें हमेशा एक साथ पर्वतारोहण करती हैं।


अदिति वैद्य- आंखों के आगे अंधेरा छाया, शव देखकर ठिठकी भी, पर हार नहीं मानी
हमने बचपन में ही पर्वतारोहण सीखना शुरू कर दिया था। अमेरिका के एकॉन्कागुआ पर्वत चढ़ने का पहला मौका मिला। 12 दिन में इस पर्वत पर 22837 फीट का सफर पूरा किया। एकॉन्कागुआ कैंप से हम तड़के 3 बजे से चलना शुरू कर देते थे। एक दिन चढ़ाई करते वक्त अचानक मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया, मैं बेसुध हो गई थी। मुझे कुछ लोगों ने झकझोरा, तब होश आया कि मैं पहाड़ पर हूं। ऐसी स्थिति में हिम्मत हारे बिना मैंने कामयाबी पाई। इसके बाद हम दोनों बहनों का सपना एवरेस्ट फतह करने का था। एवरेस्ट की चोटी की ओर बढ़ते वक्त 26 हजार फीट की ऊंचाई पर हवा एकदम खत्म हो जाती है। ऑक्सीजन के साथ बढ़ना ही अकेला विकल्प होता है। हम चढ़ाई कर रहे थे, तब एवरेस्ट पर बहुत भीड़ थी। लाइन में लगकर हमें बहुत इंतजार करना पड़ा। रास्ते में शवों के ऊपर से भी गुजरे। कुछ पल तो मैं शवों को देखकर ठिठकी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी, क्योंकि लक्ष्य आंखों के सामने था। इसी से हिम्मत आई। शिखर पर पहुंचने का जो अहसास है, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। बस यह मानिए ऐसा लग रहा था कि मानो समूची दुनिया मेरी मुट्ठी में है। 40 दिन की यह यात्रा धैर्य, साहस और रोमांच से भरपूर थी।



अदिति के मुताबिक- मुझे पहाड़ों पर चढ़ाई से अच्छा कुछ नहीं लगता।


अनुजा वैद्य- माइनस 37° तापमान में फतह की एकॉन्कागुआ, ओस की बूंदों से पानी पीते थे 
हमारी ननिहाल उत्तराखंड में है। स्कूल की छुटि्टयां अक्सर वहीं बीतती थीं। पहाड़ देखकर उनके ऊपर चढ़ने का मन करता था। सही मायनों में पर्वतारोहण की यह हमारी पहली क्लास थी। प्रशिक्षण के दौरान में हर दिन 5 घंटे अभ्यास करते। एकॉन्कागुआ हमने माइनस 37° सेल्सियस तापमान में फतह की थी। रास्ते में ओस की बूंदों से पानी पीते थे। बैग का वजन 25 किलो था। चढ़ाई के सातवें दिन तो ऐसा लगा कि अब यह सफर पूरा नहीं हो सकेगा, हमें बीच में ही छोड़ना पड़ेगा। कुछ पल के लिए मन कमजोर हुआ, लेकिन इरादा पक्का था। नतीजा, सफलता ने कदम चूमे।



अनुजा कहती हैं कि पर्वतारोहण के दौरान उनके पास 35 से 40 किलो सामान होता है।


अनुजा बताती हैं, ‘‘एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए प्रति व्यक्ति के हिसाब से 7.50 लाख रुपए परमिशन फीस लगी, अन्य खर्च को मिलाकर यह आंकड़ा 46 लाख पहुंच गया। जापान से जरूरी इक्विपमेंट खरीदे, जो एक के हिसाब से 15-15 लाख रुपए में आए। एवरेस्ट की चढ़ाई में बैग का वजन 16 किलो था। एवरेस्ट पहुंचने में सबसे मुश्किल खुंभू ग्लेशियर लगा। यह चारों ओर से बर्फ की चोटियों से घिरा हुआ है। नीचे गहरी खाई। फैनी चक्रवात का असर हम पर भी हुआ, इसलिए शिखर तक पहुंचने में ज्यादा वक्त लगा। एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने का गर्व है। इस काम में हमें 40 दिन लगे। इसके बाद हमने एल्ब्रुस (यूरोप), कार्सटेंज पिरामिड (ऑस्ट्रेलिया), विंसन और अंटार्कटिका को भी फतह करने में सफलता पाई।



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